लेखनी प्रतियोगिता -फर्ज

कल तलक़ जो दिन और रात मेरे साथ थे
उन्हीं रिश्तों में कोई बोझ अंजान हुई हूँ..

भूल गए हैं जब से वो अपने फर्ज को
गुजरे हुए वक़्त का आज निशान हुई हूँ..

कभी मुश्किल तो कभी आसान हुई हूँ
हर बार नए आगाज़ से परेशान हुई हूँ..

कभी इठलायी हूँ मैं ख़्वाबों में ख्यालों में
कभी इस ज़िन्दगी से इतना हैरान हुई हूँ..

अपनों ने जब से पहचानना छोड़ दिया है
अपने ही घर में कोई मेहमान हुई हूँ..

लोगों ने भी खूब बातें बनाई मेरी कहानी की
कुछ नहीं बस मुहब्बत में बदनाम हुई हूँ..

ज़रा सलीके से कहते तो उफ़ भी ना करूँ
ज़माने के हर पत्थर का मुक़ाम हुई  हूँ..

इस फर्ज का वजूद तुमको क्या समझाऊँ
अबज़िंदा भी हूँ और खुद ही शमशान हुई हूँ...

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5 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Anam

31-Dec-2022 08:14 AM

उम्दा सृजन

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Varsha_Upadhyay

30-Dec-2022 04:50 PM

बेहतरीन

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